'शेष है अवशेष' आपकी लिपि में (SHESH HAI AVSHESH in your script)

Hindi Roman Gujarati Bangla Oriya Gurmukhi Telugu Tamil Kannada Malayalam

'शेष है अवशेष' पर कमेंट करने के लिए यहां रोमन में लिखें अपनी बात। स्पेसबार दबाते ही वह देवनागरी लिपि में तब्दील होती दिखेगी।

Sunday, April 19, 2009

एक सुलगती नदी

मैं नहीं जानती,

बह गई एक नदी

सुलगती नदी
बहती गई
गर्म रेत अब भी
आंखों के सामने है
इनमें इंद्रधनुष का
कोई रंग नहीं

मेरे अंदर एक नदी
जमती गई
इंद्रधनुष
ताड़ के झाड़ में
उलझ कर रह गया
मेरा मैं उद्विग्न हो कर
दिनचर्या में खो गया

सचमुच
एक सुलगती नदी बह गई
जिंदगी के मुहानों को तोड़ती हुई


-अनुराग अन्वेषी,
11 फरवरी'95,
दिन के 2 बजे


कब से
मेरे आस-पास
एक सुलगती नदी
बहती है।
सबकी आंखों का इंद्रधनुष
उदास है
अर्थचक्र में पिसता है मधुमास।

मैं देखती हूं
सलाखों के पीछे
जिंदगी की आंखें
आदमियों के समंदर को
नहीं भिगोतीं।

उस दिन
लाल पाढ़ की बनारसी साड़ी ने
चूड़ियों का जखीरा
खरीदा था,
मगर सफेद सलवार-कुर्ते की जेब में
लिपस्टिक के रंग नहीं समा रहे थे।
मैं नहीं जानती,
कब से
मेरे आस-पास बहती है
एक सुलगती नदी।

(शैलप्रिया की यह कविता उनके काव्य संकलन चांदनी आग है से ली गयी है।)