tag:blogger.com,1999:blog-6717807846001515667.post2636313149420457833..comments2023-07-10T19:58:24.261+05:30Comments on शेष है अवशेष: शैलप्रियाhttp://www.blogger.com/profile/02923965968716034946noreply@blogger.comBlogger2125tag:blogger.com,1999:blog-6717807846001515667.post-46273505361459574422009-01-14T18:49:00.000+05:302009-01-14T18:49:00.000+05:30'जिंदगी से कविताकविता से दिवास्वप्नस्वप्न से शून्य...'जिंदगी से कविता<BR/>कविता से दिवास्वप्न<BR/>स्वप्न से शून्याकाश तक फैला है<BR/>मेरा विस्तार'<BR/><BR/>पहले भी इसकी किश्ते पढ़ी थी .पर उस पर कुछ कहना लिखना नही हो पाया पढ़ के बस निशब्द रह गई थी लगा कुछ लिखना कम होगा इस पर ..यह पोस्ट बहुत दिल के करीब लगी इस लिए कुछ लिख पाने की हिम्मत कर रही हूँ .माँ के बारे में आपने बहुत ही सुंदर ढंग से हर लफ्ज़ को लिखा हैरंजू भाटियाhttps://www.blogger.com/profile/07700299203001955054noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6717807846001515667.post-6688442240076880632009-01-14T18:40:00.000+05:302009-01-14T18:40:00.000+05:30शायद कुछ गलिया ऐसी होती है जिनसे जब गुजरते है तब ल...शायद कुछ गलिया ऐसी होती है जिनसे जब गुजरते है तब लगता है इन्हे ओर बेहतर बना सकते थे....गर इस याद को यूँ पकड़ा होता...माँ को दुबारा से महसूस करना कही जाने अनजाने अजीब सी पीड़ा से गुजरना है....चाहे पढ़ी लिखी लेखिका माँ हो या गाँव की सीधी साधी माँ ...डॉ .अनुरागhttps://www.blogger.com/profile/02191025429540788272noreply@blogger.com