'शेष है अवशेष' आपकी लिपि में (SHESH HAI AVSHESH in your script)

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Thursday, August 27, 2009

फुरसत में

जब कभी
फुरसत में होता है आसमान,
उसके नीले विस्तार में
डूब जाते हैं
मेरी परिधि और बिंदु के
सभी अर्थ।

क्षितिज तट पर
औंधी पड़ी दिशाओं में
बिजली की कौंध
मरियल जिजीविषा-सी लहराती है।

इच्छाओं की मेघगर्जना
आशाओं की चकमकी चमक
के साथ गूंजती रहती है।
तब मन की घाटियों में
वर्षों से दुबका पड़ा सन्नाटा
खाली बरतनों की तरह
थर्राता है।

जब कभी फुरसत में होती हूं मैं
मेरा आसमान मुझको रौंदता है
बंजर उदास मिट्टी के ढूह की तरह
सारे अहसास
हो जाते हैं व्यर्थ।
(शैलप्रिया की कविता 'फुरसत में' उनके संकलन 'चांदनी आग है' से ली गयी है)

3 comments:

  1. सुन्दर शब्दो से पिरोया लाजवाब रचना।

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  2. बहुत सुंदर कविता है

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