उदय वर्मा
शैलप्रिया के सगे भाई हैं उदय वर्मा। उम्र में अपनी शैल दी से तकरीबन 5 बरस छोटे। रांची से प्रकाशित दैनिक अखबार 'रांची एक्सप्रेस' में समाचार संपादक हैं। खुद बहुत ही अच्छी कविताएं लिखते रहे हैं। आकाशवाणी रांची से उनकी कविताओं का प्रसारण होता रहा है।
बहरहाल, इस संस्मरण में एक भाई ने अपनी बहन के जीवन को, उसकी उपलब्धियों को किस रूप में याद किया है, यह आप पढ़ें।
- अनुराग अन्वेषी
बचपन में शैलप्रिया को गीत सबसे ज्यादा प्रभावित करते थे। गजल भी उन्हें अच्छी लगती थी। उन दिनों एक पत्रिका प्रकाशित होती थी - सुषमा। इसमें गजलें खूब छपती थीं। इसी पत्रिका के माध्यम से वह गजल से परिचित हुई थीं। बाद में वह महादेवी की कविताओं के प्रभाव में आयीं और कविता की ही होकर रह गईं। गीत और गजल पीछे छूट गए, मां के घर की तरह।
मुझे लगता है कि शैल दीदी का बचपन का संसार बहुत बड़ा नहीं था, लेकिन उनके सपने बड़े थे। वे सपने कैसे थे? वह जुड़ती बहुत कम लोगों से थीं, लेकिन जिनसे जुड़ती थीं, बहुत आत्मीयता के साथ जुड़ती थीं। वह बचपन में भी कभी निर्द्वंद्व नहीं रहीं। उनके द्वंद्व के केंद्रे में क्या था? मुझे लगता है कि यह द्वंद्व ही अलग-अलग रूपों और परिस्थितियों में उन्हें लिखने के लिए भाव-भूमि प्रदान करता रहा। क्या वह बचपन में भी उतनी ही संतोषी, सबकी चिंता करने वाली, ममत्व से भरी थीं जितना बाद में नजर आयीं?...
मुझे लगता है कि शैल दीदी का बचपन एक सुंदर कहानी की कथावस्तु है और... यह कहानी कम ही लोग लिख सकते हैं।
'अपने लिए' कविता संग्रह के प्रकाशन के साथ ही शैल दी का एक बड़ सपना साकार हुआ था। इस संग्रह ने पहली बार उन्हें महत्वाकांक्षी बना दिया था। 'अपने लिए' की प्रति मुझे देते हुए उन्होंने कहा था 'यह मेरी मंजिल नहीं है। वैसे, मैंने चलना शुरू कर दिया है। लेकिन सिर्फ चलते रहने से मंजिल नहीं मिल जाती। कभी-कभी तो लगता है कि जिसे हम मंजिल मान लेते हैं वह वास्तव में मंजिल होती ही नहीं है।' शैल दी तर्कों में बहुत कम उलझती थीं। अपने मन की बात नितांत सहज और सरल ढंग से कह देती थीं। इसके लिए उन्हें किसी भूमिका की जरूरत नहीं पड़ती थी। उसका पूरा जीवन भी तो भूमिका विहीन था। जब 'चांदनी आग है' प्रकाशित हुआ, तब मुझे महसूस हुआ कि शैल दी की व्याख्या कितनी सही थी। 'अपने लिए' उनके रचनात्मक जीवन का पहला पड़ाव था और 'चांदनी आग है' दूसरा पड़ाव। और इन दोनों पड़ावों के बीच मंजिल जैसी कौई चीज कहीं नहीं थी। वास्तव में इन दोनों कविता संग्रहों से शैल दी की ठहरी हुई जिंदगी में एक हलचल आयी थी। उनमें जीने की सार्थकता का अहसास जगा था और अपनी पहचान एवं अस्तित्व की लड़ाई में लगातार पराजित होती एक महिला का पुनर्जन्म हुआ था।
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