आज
जीना बहुत कठिन है।
लड़ना भी मुश्किल अपने-आप से।
इच्छाएं छलनी हो जाती हैं
और तनाव के ताबूत में बंद।
वैसे,
इस पसरते शहर में
कैक्टस के ढेर सारे पौधे
उग आए हैं
जंगल-झाड़ की तरह।
इन वक्रताओं से घिरी मैं
जब देखती हूं तुम्हें,
उग जाता है
कैक्टस के बीच एक गुलाब
और
जिंदगी का वह लम्हा
सार्थक हो जाता है।
(शैलप्रिया की यह कविता उनके काव्य संकलन चांदनी आग है से ली गयी है।)
और अब तो...
1 week ago
Waah !! Bahut bahut sundar.....bhavpoorn panktiyan man me utar gayin.Waah !!
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