'शेष है अवशेष' आपकी लिपि में (SHESH HAI AVSHESH in your script)

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Wednesday, February 11, 2009

आमंत्रण

आओ

हम फिर शुरू करें
आजादी का गीत,
कि खुले कंठ से
स्वरों को सांचा दें
कि हमारी आकांक्षाएं
पेड़ के तनों पर टंगे घोंसलों में
स्वेच्छया कैद
पंछी बन गयी है
और आकाश के उन्मुक्त फैलाव से
उसका कोई दैहिक संबंध
नहीं रह गया है।

आओ
हम फिर शुरू करें
आजादी का गीत
कि हमारी चोंच पर पहरा है
बहेलिये के जाल का।

आओ
बंधक पंखों को झटक कर नाचें
दुख-सुख समवेत बांटें
अपने कोटरों से बाहर आएं
भय के दबाव से मुक्त होकर गाएं,

आओ
हम फिर शुरू करें
आजादी का गीत।
(शैलप्रिया की कविता 'आमंत्रण' उनके संकलन 'चांदनी आग है' से ली गयी है)

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