दिल्ली से 4 नवंबर को पापा का फोन आया कि 11 को मां का ऑपरेशन है। और यह रिस्की भी है।
11 नवंबर को जब मां एम्स में ऑपरेशन थिएटर के सामने बैठी थी, एक डॉक्टर ने मां की ओर इशारा करते हुए दूसरे से कहा 'इनका ऑपरेशन डेंजरस है।' इस बात को मां ने सुन लिया। घर आकर उसने हमसे इस संदर्भ में पूछा। हमसब ने बात को हंस कर उड़ा दिया। मैंने मां से कहा कि तुमने गलत सुना होगा, डॉक्टर कह रहा होगा कि यह महिला बहुत डेंजरस है। और फिर इस बात पर काफी देर तक मजाक चलाता रहा।
10 तारीख को पापा मुझे लेकर कुछ खरीदारी के बहाने बाहर निकले। रास्ते में उन्होंने बताया कि मां को कैंसर है और ऑपरेशन में बहुत ज्यादा रिस्क है। एम्स के डॉक्टर पीयूष साहनी का कहना है कि ऑपरेशन के सफल होने की बहुत कम संभावना है, लेकिन ऑपरेशन का रिस्क लेना चाहिए। क्योंकि बाद की जो स्थिति आएगी, वह और भी दुःसहनीय होगी। उनके मुताबिक, मां को बाद के दिनों में भूख-प्यास बहुत तेज लगेगी, लेकिन मां न तो कुछ खा पाएंगी और न ही कुछ पी पाएंगी। यह सब बताते हुए पापा की आंखें नम थीं और मेरी भी। फुटपाथ पर हम दोनों काफी देर इसी स्थिति में खड़े रहे, दोनों चुप।
पापा ने आगे कहा - सोचो आगे क्या करना है? हमलोगों के पास वक्त बहुत कम है। फिर पापा ने कहा - स्थिति अगर हमारे अनुकूल रही तब तो बहुत अच्छी बात होगी और यदि ऑपरेशन सफन नहीं हुआ तब...? इसी 'तब' पर आकर तो दिमाग शिथिल हुआ जा रहा था। खैर, अंत में हमारी सहमति इस बात पर हुई कि प्रतिकूल स्थिति में पापा और रेमी, मां को लेकर रांची की फ्लाइट से लौटेंगे और मैं और भाई ट्रेन से।
दिमाग की नसें फटी जा रही थीं। और हम घर वापस लौटे। मां से लिपट कर बहुत रोने को जी चाह रहा था। सारी कमजोर भावनाओं को दबाते हुए मैं मां के पास बैठ गया। इधर-उधर की बातें करने लगा। अपने स्वभाव के मुताबिक मैं मां को छेड़ रहा था, हंस रहा था और हंसाने की कोशिश कर रहा था।
दूसरे दिन, हम सभी ने एम्स में बड़ी बेचैनी का दिन गुजारा। पापा, भइया, मंजुल प्रकाश, संजय लाल और राजेश प्रियदर्शी सभी के चेहरे पर अनिश्चितता के भाव थे। रेमी को एम्स में ही बताया गया कि आज का दिन बड़ा भारी है। कैंसर की बात तब भी रेमी से नहीं कही गयी थी क्योंकि आशंका थी कि फिर वह मां के सामने खुद को सामान्य नहीं रख पाएगी। ऑपरेशन में रिस्क की बात सुनकर रेमी व्याकुल हो गयी। चूंकि कुछ अन्य ऑपरेशनों में उस दिन डॉक्टर को देर हो गयी, इसीलिए हमें फिर 13 नवंबर को बुलाया गया।
11 नवंबर को जब मां एम्स में ऑपरेशन थिएटर के सामने बैठी थी, एक डॉक्टर ने मां की ओर इशारा करते हुए दूसरे से कहा 'इनका ऑपरेशन डेंजरस है।' इस बात को मां ने सुन लिया। घर आकर उसने हमसे इस संदर्भ में पूछा। हमसब ने बात को हंस कर उड़ा दिया। मैंने मां से कहा कि तुमने गलत सुना होगा, डॉक्टर कह रहा होगा कि यह महिला बहुत डेंजरस है। और फिर इस बात पर काफी देर तक मजाक चलाता रहा। मां को बहलाने की हमारी कोशिश चलती रही। पता नहीं मां हमलोगों की बातों से कितना संतुष्ट हुई थी।
(जारी)
अगली पोस्ट का इन्जार रहेगा।
ReplyDeleteसरकारी अस्पतालों में यह आम बात है. मरीज और उसके तीमारदारों का मनोबल तोडने के लिए डॉक्टर लोग जान-बूझ कर ऐसा करते हैं.
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