'शेष है अवशेष' आपकी लिपि में (SHESH HAI AVSHESH in your script)

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'शेष है अवशेष' पर कमेंट करने के लिए यहां रोमन में लिखें अपनी बात। स्पेसबार दबाते ही वह देवनागरी लिपि में तब्दील होती दिखेगी।

Sunday, February 01, 2009

दिस लेडि इज डेंजरस

अनुराग अन्वेषी


हॉ
स्पिटल में दो रात इधर लगातार मैं जागता रहा था, क्योंकि कभी भी मां को मेरी कोई जरूरत महसूस हो सकती थी। इसके अतिरिक्त इस महानगर में अकेलेपन का तनाव, मां की लगातार बढ़ती कमजोरी, कुछ लोगों के चुभते व्यवहार, इन सबसे मैं लगातार तनाव में रह रहा ता। पापा को देखते सब के सब तनाव हल्के हो गये। उस रोज घर लौटकर मुझे बड़ी इत्मीनान की नींद आयी। और जब नींद टूटी तो देखता हूं कि मां-पापा, भइया सभी घर आ चुके हैं। मां को एम्स से छुट्टी मिल चुकी थी। मां, पापा से कह रही थी 'हम तो ठीक होने की आशा छोड़ चुके थे। लेकिन अब उम्मीद फिर से बनी है।'

2 नवंबर को मां के बायोप्सी की रिपोर्ट मिलनी थी और इसी दिन राजेश प्रियदर्शी को रांची जाना था। मुझे लगा रांची में रेमी-दादी अकेली हैं, 3 नवंबर को दीपावली है, रेमी खुद को बहुत अकेला महसूस करेगी। पापा, भइया और मां सबकी सलाह से मैं भी 2 नवंबर को रांची के लिए चला। साथ में मामी भी रांची लौंटी।

दिल्ली से 4 नवंबर को पापा का फोन आया कि 11 को मां का ऑपरेशन है। और यह रिस्की भी है।

11 नवंबर को जब मां एम्स में ऑपरेशन थिएटर के सामने बैठी थी, एक डॉक्टर ने मां की ओर इशारा करते हुए दूसरे से कहा 'इनका ऑपरेशन डेंजरस है।' इस बात को मां ने सुन लिया। घर आकर उसने हमसे इस संदर्भ में पूछा। हमसब ने बात को हंस कर उड़ा दिया। मैंने मां से कहा कि तुमने गलत सुना होगा, डॉक्टर कह रहा होगा कि यह महिला बहुत डेंजरस है। और फिर इस बात पर काफी देर तक मजाक चलाता रहा।

तुम और रेमी वहां से 7 को चल दो, कुछ पैसे भी लेते आना। ऑपरेशन में रिस्क की बात रांची में मैंने किसी को नहीं बताई, रेमी को भी नहीं। 8 नवंबर की ट्रेन में हम दोनों का रिजर्वेशन हो सका। ट्रेन काफी विलंब से दिल्ली पहुंची थी। तकरीबन 1:30 बजे रात को। भइया स्टेशन पर मौजूद था।

10 तारीख को पापा मुझे लेकर कुछ खरीदारी के बहाने बाहर निकले। रास्ते में उन्होंने बताया कि मां को कैंसर है और ऑपरेशन में बहुत ज्यादा रिस्क है। एम्स के डॉक्टर पीयूष साहनी का कहना है कि ऑपरेशन के सफल होने की बहुत कम संभावना है, लेकिन ऑपरेशन का रिस्क लेना चाहिए। क्योंकि बाद की जो स्थिति आएगी, वह और भी दुःसहनीय होगी। उनके मुताबिक, मां को बाद के दिनों में भूख-प्यास बहुत तेज लगेगी, लेकिन मां न तो कुछ खा पाएंगी और न ही कुछ पी पाएंगी। यह सब बताते हुए पापा की आंखें नम थीं और मेरी भी। फुटपाथ पर हम दोनों काफी देर इसी स्थिति में खड़े रहे, दोनों चुप।

पापा ने आगे कहा - सोचो आगे क्या करना है? हमलोगों के पास वक्त बहुत कम है। फिर पापा ने कहा - स्थिति अगर हमारे अनुकूल रही तब तो बहुत अच्छी बात होगी और यदि ऑपरेशन सफन नहीं हुआ तब...? इसी 'तब' पर आकर तो दिमाग शिथिल हुआ जा रहा था। खैर, अंत में हमारी सहमति इस बात पर हुई कि प्रतिकूल स्थिति में पापा और रेमी, मां को लेकर रांची की फ्लाइट से लौटेंगे और मैं और भाई ट्रेन से।

दिमाग की नसें फटी जा रही थीं। और हम घर वापस लौटे। मां से लिपट कर बहुत रोने को जी चाह रहा था। सारी कमजोर भावनाओं को दबाते हुए मैं मां के पास बैठ गया। इधर-उधर की बातें करने लगा। अपने स्वभाव के मुताबिक मैं मां को छेड़ रहा था, हंस रहा था और हंसाने की कोशिश कर रहा था।

दूसरे दिन, हम सभी ने एम्स में बड़ी बेचैनी का दिन गुजारा। पापा, भइया, मंजुल प्रकाश, संजय लाल और राजेश प्रियदर्शी सभी के चेहरे पर अनिश्चितता के भाव थे। रेमी को एम्स में ही बताया गया कि आज का दिन बड़ा भारी है। कैंसर की बात तब भी रेमी से नहीं कही गयी थी क्योंकि आशंका थी कि फिर वह मां के सामने खुद को सामान्य नहीं रख पाएगी। ऑपरेशन में रिस्क की बात सुनकर रेमी व्याकुल हो गयी। चूंकि कुछ अन्य ऑपरेशनों में उस दिन डॉक्टर को देर हो गयी, इसीलिए हमें फिर 13 नवंबर को बुलाया गया।

11 नवंबर को जब मां एम्स में ऑपरेशन थिएटर के सामने बैठी थी, एक डॉक्टर ने मां की ओर इशारा करते हुए दूसरे से कहा 'इनका ऑपरेशन डेंजरस है।' इस बात को मां ने सुन लिया। घर आकर उसने हमसे इस संदर्भ में पूछा। हमसब ने बात को हंस कर उड़ा दिया। मैंने मां से कहा कि तुमने गलत सुना होगा, डॉक्टर कह रहा होगा कि यह महिला बहुत डेंजरस है। और फिर इस बात पर काफी देर तक मजाक चलाता रहा। मां को बहलाने की हमारी कोशिश चलती रही। पता नहीं मां हमलोगों की बातों से कितना संतुष्ट हुई थी।

(जारी)

2 comments:

  1. अगली पोस्ट का इन्जार रहेगा।

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  2. सरकारी अस्पतालों में यह आम बात है. मरीज और उसके तीमारदारों का मनोबल तोडने के लिए डॉक्टर लोग जान-बूझ कर ऐसा करते हैं.

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