सुना है
कोई स्त्री गाती थी गीत
सन्नाटी रात में।
उजाले के गीत का
कोई श्रोता नहीं था,
नहीं कोई सहृदय
व्यथा की धुन को सुनने वाला।
समुद्र के गीत लहरों की हलचलें सुनाती हैं
पहाड़ा का गीत
झरने सुनते हैं,
सड़कों पर बड़ी भीड़ है,
मगर स्त्री के गीत का मर्म
नहीं समझता कोई।
बर्फ के टुकड़ों की तरह
पिघलता है गीत,
कांच के बर्तन में
अस्तित्वहीन होती स्त्री की तरह।
पुरानी तस्वीर...
2 months ago
बर्फ के टुकड़ों की तरह
ReplyDeleteपिघलता है गीत,
कांच के बर्तन में
अस्तित्वहीन होती स्त्री की तरह।
-बहुत भावपूर्ण रचना. प्रस्तुति के लिए आभार.
समुद्र के गीत लहरों की हलचलें सुनाती हैं
ReplyDeleteपहाड़ा का गीत
झरने सुनते हैं,
सड़कों पर बड़ी भीड़ है,
मगर स्त्री के गीत का मर्म
नहीं समझता कोई।
dil ko chu dene waali kavita hai
समयचक्र: चिठ्ठी चर्चा : चिठ्ठी लेकर आया हूँ कोई देख तो नही रहा हैबहुत अच्छा जी
ReplyDeleteआपके चिठ्ठे की चर्चा चिठ्ठीचर्चा "समयचक्र" में
महेन्द्र मिश्र
बहुत सुंदर गीत आनद दाई
ReplyDelete. मेरे ब्लॉग पर पधार कर "सुख" की पड़ताल को देखें पढ़ें आपका स्वागत है
http://manoria.blogspot.com
बहुत सुंदर गीत आनद दाई
ReplyDelete. मेरे ब्लॉग पर पधार कर "सुख" की पड़ताल को देखें पढ़ें आपका स्वागत है
http://manoria.blogspot.com
बर्फ के टुकड़ों की तरह
ReplyDeleteपिघलता है गीत,
कांच के बर्तन में
अस्तित्वहीन होती स्त्री की तरह।
बेहद खूबसूरत शुक्रिया