'शेष है अवशेष' आपकी लिपि में (SHESH HAI AVSHESH in your script)

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'शेष है अवशेष' पर कमेंट करने के लिए यहां रोमन में लिखें अपनी बात। स्पेसबार दबाते ही वह देवनागरी लिपि में तब्दील होती दिखेगी।

Tuesday, February 10, 2009

मां से मेरी आखिरी मुलाकात

अनुराग अन्वेषी


15

की सुबह भइया, पापा और मैं मां को लेकर डॉ. घोषाल के पास गये। डॉ. घोषाल ने मां को देखा और कहा कि एक महीने की दवा के बाद ठीक हो जायेगी। जिस इत्मीनान के साथ डॉ. घोषाल ने यह बात कही थी, उस पर विश्वास कर पाना सहज नहीं था हमलोगों के लिए। 16 की सुबह एक बार फिर भइया और मैंने डॉ. घोषाल से मुलाकात की और इस बार की मुलाकात ने हमारे भीतर बहु बड़ी आशा जगा दी। घोषाल ने बगैर किसी रिपोर्ट को देखे हमलोगों से कहा कि तुम्हारी मां को जिगर का कैंसर है, लेकिन ठीक हो जायेगा। इस बीच कई अन्य रोगियों ने भी डॉक्टर के संदर्भ में अद्भुत बातें बताईं।

15, 16, 17 नवंबर - इन तीन दिनों में ही दवाओं ने मां के स्वास्थ्य पर गहरा असर किया। लगा मां स्वस्थ हो रही है। ऑपरेशन के संदर्भ हमलोगों ने निर्णय किया कि जब तक घोषाल की आशा बची है तक तक ऑपरेशन की तारीख को आगे खिसकाया जायेगा। 18 नवंबर की सुबह 4 बजे मां से मेरी आखिरी मुलाकात रही। उस दिन मैं रांची लौट रहा था क्योंकि दादी की तबीयत रांची में खराब थी। उस सुबह मां ने कहा 'सबको कहना घबराने की जरूरत नहीं है, हम जल्द ही ठीक होकर रांची लौटेंगे।' सचमुच, मां की इच्छाशक्ति बहुत मजबूत थी, लेकिन वह उसका शरीर कमजोरी से नहीं लड़ सका।

रांची जब मैं लौटा तो मां के कैंसर के संबंध में मैंने किसी से कुछ नहीं कहा क्योंकि आशंका थी कि इस खबर के बाद लोग तुरंत दिल्ली पहुंचेंगे और मां की इच्छाशक्ति कमजोर पड़ेगी। उसे यह पक्का यकीन हो जाता कि उसे कोई असाध्य बीमारी है। दूसरी तरफ मैं इस आशा से भी लैस था कि घोषाल की दवा से मां ठीक होकर जल्द ही रांची आयेगी।

रांची में इस बार मुझे ऊब हो रही थी। फिर भी वक्त की जरूरत समझ मैं रांची में ही रह रहा ता। इस बीच अरुण मामा मां को देखने दिल्ली गये। उनका लौटना 1 दिसंबर की दोपहर को हुआ। उस दिन मामा के हाथों पापा का पत्र मिला। यह पत्र 30 नवंबर 94 की सुबह 5:25 पर लिखा गया था। पत्र की कुछ पंक्तियों को पढकर मेरा मन बहुत अशांत हो गया। पापा ने पत्र में एक जगह लिखा था 'इतने कम समय में क्या लिखूं और क्या न लिखूं, यह समझ में नहीं आ रहा। तुम धीरज रखना और घर की व्यवस्था किये रहना तुम्हारा रांची में रहना अभी जरूरी है।'

एम्स के डॉक्टर ने 5 दिसंबर की भर्ती करने के लिए कहा था। इस संदर्भ में पापा ने उसी पत्र में लिखा था 'ऑपरेशन की डेट कम से कम पंद्रह दिनों के लिए बढ़ाने का विचार पक्का है। अभी एम्स में 5 दिसंबर को भर्ती करने को लिखा-कहा है। लेकिन मध्य दिसंबर तक कम-से-कम डॉ. घोषाल की दवाओं का असर देखना है। उम्मीद अच्छी है, फिर भी कुछ निश्चित सोच पाना मुश्किल है। वैसे, तुम्हारी मां की कमजोरी की मौजूदा स्थिति में कोई भी ऑपरेशन आसान नहीं लगता। कैसे झेल सकेगी वह, यह सब?'
मैं पत्र की बातों को ही सोच रहा था। रात के 10:30 बज रहे थे। तभी फोन की घंटी बजी। भइया की आवाज थी कि अनुराग, मां की तबीयत बहुत खराब है, हमलोग मां को लेकर आ रेह हैं। मेरे सामने मां का कमजोर शरीर और चेहरा घूम गया। मंझली मामी मेरी बगल में खड़ी थीं। मैंने डरते-डरते पूछा - ट्रेन से या प्लेन से? भइया ने जवाब दिया - प्लेन से। तभी घर का कॉलबेल बजा। इसके बाद मुझे कुछ भी याद नहीं कि भइया से मेरी क्या बातचीत हुई। मामी ने बताया कि अनूप मामा ड्यूटी से आ चुके हैं। मैं कांप रहा था। मामी ने पूछा 'कांप क्यों रहे हैं आप?' मैंने कहा 'दिसंबरी जाड़े की रात है।' बड़ी मुश्कल से अपने को संतुलित कर सका। मेरे जेहन में तो सिर्फ मां थी। मामी-मामा को खाना खिला कर मैंने उन्हें सोने के लिए भेज दिया और खुद कमरे में आकर लेट गया। उस बंद कमरे में मैंने पंखे को पांच पर कर दिया ताकि मेरी रुलाई घर के अन्य सदस्यों तक न पहुंचे। बार-बार मुझे लगता था कि नहीं, ऐसा कुछ भी अनिष्ट नहीं हुआ होगा; मां मुझे छोड़कर ऐसे कैसे चली जायेगी? कान में भइया के शब्द गूंज रहे थे - प्लेन से। ख्याल आता कि मां प्लेन से उतर रही है, बड़ी कमजोर हो चुकी है, पापा मां को सहारा दिये हुए हैं। मुझे देखकर मां की आंखें भर आई हैं। मैं दौड़कर मां से लिपट जाता हूं, मां कहती है, बस तुम्हारा ही इंतजार था और मां मेरी गोद में दम तोड़ देती है। पता नहीं और कैसे-कैसे चित्र आंखों में घूमते रहे। मैं अपने कमरे में रोता रहा।

उस रात के बाद मेरी आंखों से आंसू तो नहीं बहे, लेकिन अब भी इंतजार करता हूं अपनी मां का कि शायद मेरे सपने में आयेगी, मुझसे बातें करेगी मेरी प्यारी मां।

4 comments:

  1. बहुत मार्मिक पोस्ट...धुंधली आंखों से ही पढ़ पाया...माँ होती ही ऐसी है....

    नीरज

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  2. भावुक कर दिया आपने ....

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  3. माँ हर पल साथ ही होती है ...पढ़ कर आँखे नम हो गई और कुछ अपना याद आ गया

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  4. यह ब्लॉग वास्तव में बेहतरीन है। अापसे हुई बातचीत के बाद मैंने अाज मौका पा कर ब्लॉग देखा। इस पोस्ट को पढ़ने के बाद मेरी भी अांखें नम हो अाईं। अागे नहीं पढ़ सका। कई बार िनयित हमें एेसे खेल िदखाती है िजसकी हम कल्पना भी नहीं कर सकते। यह जानकर भी िक सच को बदला नहीं जा सकता िफर भी उम्मीद का दामन नहीं छोड़ते िक काश...

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