'शेष है अवशेष' आपकी लिपि में (SHESH HAI AVSHESH in your script)

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Saturday, February 21, 2009

स्त्री के गीत

सुना है
कोई स्त्री गाती थी गीत
सन्नाटी रात में।
उजाले के गीत का
कोई श्रोता नहीं था,
नहीं कोई सहृदय
व्यथा की धुन को सुनने वाला।


समुद्र के गीत लहरों की हलचलें सुनाती हैं
पहाड़ा का गीत
झरने सुनते हैं,
सड़कों पर बड़ी भीड़ है,
मगर स्त्री के गीत का मर्म
नहीं समझता कोई।


बर्फ के टुकड़ों की तरह
पिघलता है गीत,
कांच के बर्तन में
अस्तित्वहीन होती स्त्री की तरह।

(शैलप्रिया की कविता 'स्त्री के गीत' उनके संकलन 'चांदनी आग है' से ली गयी है)

6 comments:

  1. बर्फ के टुकड़ों की तरह
    पिघलता है गीत,
    कांच के बर्तन में
    अस्तित्वहीन होती स्त्री की तरह।

    -बहुत भावपूर्ण रचना. प्रस्तुति के लिए आभार.

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  2. समुद्र के गीत लहरों की हलचलें सुनाती हैं
    पहाड़ा का गीत
    झरने सुनते हैं,
    सड़कों पर बड़ी भीड़ है,
    मगर स्त्री के गीत का मर्म
    नहीं समझता कोई।
    dil ko chu dene waali kavita hai

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  3. समयचक्र: चिठ्ठी चर्चा : चिठ्ठी लेकर आया हूँ कोई देख तो नही रहा हैबहुत अच्छा जी
    आपके चिठ्ठे की चर्चा चिठ्ठीचर्चा "समयचक्र" में
    महेन्द्र मिश्र

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  4. बहुत सुंदर गीत आनद दाई

    . मेरे ब्लॉग पर पधार कर "सुख" की पड़ताल को देखें पढ़ें आपका स्वागत है
    http://manoria.blogspot.com

    ReplyDelete
  5. बहुत सुंदर गीत आनद दाई

    . मेरे ब्लॉग पर पधार कर "सुख" की पड़ताल को देखें पढ़ें आपका स्वागत है
    http://manoria.blogspot.com

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  6. बर्फ के टुकड़ों की तरह
    पिघलता है गीत,
    कांच के बर्तन में
    अस्तित्वहीन होती स्त्री की तरह।

    बेहद खूबसूरत शुक्रिया

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