हे सखी,
औरत फूलों से प्यार करती है,
कांटों से डरती है,
दीपक-सी जलती है,
बाती-सी बुझती है।
एक युद्ध लड़ती है औरत
खुद से, अपने आसपास से,
अपनों से, सपनों से।
जन्म से मृत्यु तक
जुल्म-सितम सहती है,
किंतु मौन रहती है।
हे सखी,
कल मैंने सपने में देखा है -
मेरी मोम-सी गुड़िया
लोहे के पंख लगा चुकी है।
मौत के कुएं से नहीं डरती वह,
बेड़ियों से बगावत करती है,
जुल्म से लड़ती है,
और मेरे भीतर
एक नयी औरत
गढ़ती है।
(शैलप्रिया की यह कविता उनके काव्य संकलन चांदनी आग है से ली गयी है।)
पुरानी तस्वीर...
2 months ago
हे सखी,
ReplyDeleteकल मैंने सपने में देखा है -
मेरी मोम-सी गुड़िया
लोहे के पंख लगा चुकी है।
मौत के कुएं से नहीं डरती वह,
बेड़ियों से बगावत करती ह,
जुल्म से लड़ती है,
और मेरे भीतर
एक नयी औरत
गढ़ती है।
बहुत सुन्दर।
bediyon se bagaawat karane ke liye prerana deti hai yah kawita.
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