क्या होता है किसी स्त्री का दर्द? कैसी होती है उसकी दुनिया? किन सवालों और किन हालातों से जूझती होती है वह? और अयाचित या खिलाफ हालात में कैसी होती है उसकी मनोदशा? ये कुछ ऐसे सवाल हैं जिनके जवाबों से मैं बार-बार रुबरु होता हूं मां की कविताओं से गुजरते हुए। ऐसा नहीं कि इन सवालों के जवाब सिर्फ मेरी मां की कविताओं में हैं। इन विषयों पर पहले भी खूब लिखी गई हैं कविताएं और आज भी लिखी जा रही हैं। सिर्फ कविताएं ही क्यों, स्त्री के जीवन के ये पहलू तो लेखन की तमाम विधाओं में बार-बार नजर आते हैं। पर सही है कि दूसरी जगहों पर तमाम चीजों को पढ़ते हुए मैं उनसे सिर्फ मानसिक स्तर पर जुड़ा, इन हालातों से उपजे सवाल मन में गहरे नहीं उतरे। गहरे नहीं उतरने की वजह दूसरों का लेखन नहीं, बल्कि मैं हूं। क्योंकि मैंने उन्हें महज पढ़ा, महसूस नहीं किया। पर मां को पढ़ते हुए बातें बड़ी तेजी से मेरे भीतर घर बनाती गईं, क्योंकि मां के लेखन से मैं मावनात्मक स्तर से जुड़ा रहा। चीजों को महसूस करने की कोशिश नहीं की, अनायास ही चीजें महसूस होती गईं और मुझे मेरा अपराध दिखने लगा।
बहरहाल, कल जिंदगी नाम की मां की कविता पोस्ट की थी, उसी कड़ी की अगली कविता है सवाल। -अनुराग अन्वेषी
पिताश्री,
तुमने क्यों
आकाशबेल की तरह
चढ़ा दिया था
शाल वृक्ष के कंधों पर?
मुझे सख्त जमीन चाहिए थी।
अब तक और अब तक
चढ़ती रही हूं
पीपल के तनों पर
नीम सी उगी हुई मैं
फैलती रही है तुम्हारी बेल
जबकि उलझाता रहा यह सवाल
कि मेरी जड़ें कहां हैं?
मेरी मिट्टी कहां है?
कब तक और कब तक
एक बैसाखी के सहारे
चढ़ती रहूं,
झूलती रहूं
शाल वृक्ष के तनों पर।
झेलती रहूं
आंधी, पानी और धूप?
(शैलप्रिया की कविता 'सवाल' उनके संकलन 'चांदनी आग है' से ली गयी है)
नीम सी उगी हुई मैं
ReplyDeleteफैलती रही है तुम्हारी बेल
जबकि उलझाता रहा यह सवाल
कि मेरी जड़ें कहां हैं?
मेरी मिट्टी कहां है?
इन पंक्तियों का जवाब नहीं ..एक सवाल जो दिल में हर वक़्त रहता है ..बहुत ही अच्छे बिम्ब लगे इस रचना के
bahut achhi rachna...DHANYAVAAD.aapne shailpriya ji ki kavitayen pesh kar achha karya kiya hai..
ReplyDeleteमुझे सख्त जमीन चाहिए थी।
ReplyDeleteIs pankti ke sabhi sabd man ko chuu lete he . Bahut Bahut Dhanya badd .. appko.. !! shailpriya ji ki aise kabitao ki ajj humare smaj ko bahut jaroorat he.......