'शेष है अवशेष' आपकी लिपि में (SHESH HAI AVSHESH in your script)

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Tuesday, March 03, 2009

क्रंदन

क्षमा याचना


जब कभी
मोती से सुंदर शब्दों में
तुम्हारा अकेलापन
देखता हूं
शब्द नहीं रह जाते
महज शब्द
बल्कि शूल की तरह
चुभने लगते हैं
मेरा स्वत्व
अचानक अपरिचित हो जाता है
कि तुम्हारा रुदन
मेरी चीख में
तब्दील होता गया है

लेकिन तुम
अब नहीं सुन सकती
मेरी कविताएं/मेरी चीख
ठीक वैसे ही
जैसे मैंने
अनदेखी की हैं
तुम्हारी कविताओं की/तुम्हारे रुदन की
-अनुराग अन्वेषी,
6 फरवरी'95,
रात 1.30 बजे

जहर का स्वाद
चखा है तुमने?
उतना विषैला नहीं होता
जितनी विषैली होती हैं बातें,
कि जैसे
काली रातों से उजली होती हैं
सूनी रातें।

पिरामिडी खंडहर में
राजसिंहासन की खोज
एक भूल है
और सूखी झील में
लोटती मछलियों को
जाल में समेटना भी क्या खेल है?

दंभी दिन
पराजित होकर ढलता है
हर शाम को
और शाम
अंधेरी हवाओं की ओट में
सिसकती है
तो दूर तलक दिशाओं में
प्रतिध्वनित होती है
अल्हड़ चांदनी की चीख।

और मुझमें एक रुदन
शुरू हो जाता है।
(शैलप्रिया की कविता 'क्रंदन' उनके संकलन 'चांदनी आग है' से ली गयी है)

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