क्षमा याचना
जब कभी
मोती से सुंदर शब्दों में
तुम्हारा अकेलापन
देखता हूं
शब्द नहीं रह जाते
महज शब्द
बल्कि शूल की तरह
चुभने लगते हैं
मेरा स्वत्व
अचानक अपरिचित हो जाता है
कि तुम्हारा रुदन
मेरी चीख में
तब्दील होता गया है
लेकिन तुम
अब नहीं सुन सकती
मेरी कविताएं/मेरी चीख
ठीक वैसे ही
जैसे मैंने
अनदेखी की हैं
तुम्हारी कविताओं की/तुम्हारे रुदन की
-अनुराग अन्वेषी,
6 फरवरी'95,
रात 1.30 बजे
चखा है तुमने?
उतना विषैला नहीं होता
जितनी विषैली होती हैं बातें,
कि जैसे
काली रातों से उजली होती हैं
सूनी रातें।
पिरामिडी खंडहर में
राजसिंहासन की खोज
एक भूल है
और सूखी झील में
लोटती मछलियों को
जाल में समेटना भी क्या खेल है?
दंभी दिन
पराजित होकर ढलता है
हर शाम को
और शाम
अंधेरी हवाओं की ओट में
सिसकती है
तो दूर तलक दिशाओं में
प्रतिध्वनित होती है
अल्हड़ चांदनी की चीख।
और मुझमें एक रुदन
शुरू हो जाता है।
(शैलप्रिया की कविता 'क्रंदन' उनके संकलन 'चांदनी आग है' से ली गयी है)
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