'शेष है अवशेष' आपकी लिपि में (SHESH HAI AVSHESH in your script)

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Friday, March 27, 2009

उत्तर की खोज में

एक छोटे तालाब में
कमल-नाल की तरह
बढ़ता मेरा अहं
मुझसे पूछता है मेरा हाल।

मैं इस कदर एक घेरे को
प्यार क्यों करती हूं?

दिनचर्याओं की लक्ष्मण रेखाओं को
नयी यात्राओं से
क्यों नहीं काट पाती मैं?

दर्द को महसूसना
अगर आदमी होने का अर्थ है
तो मैं सवालों के चक्रव्यूह में
पाती हूं अपने को।

मुक्तिद्वार की कोई परिभाषा है
तो बोलो
वे द्वार कब तक बंद रहेंगे
औरत के लिए?

मैं घुटती हुई
खुली हवा के इंतजार में
खोती जाऊंगी अपना स्वत्व
तब शेष क्या रह जाएगा?
दिन का बचा हुआ टुकड़ा
या काली रात?
तब तक प्रश्नों की संचिका
और भारी हो जाएगी।

तब भी क्या कोई उत्तर
खोज सकूंगी मैं?

(शैलप्रिया की यह कविता उनके काव्य संकलन चांदनी आग है से ली गयी है।)

1 comment:

  1. bahut der tk sonchati rahi, is kawita ke kis ansh ko wishesh kahun? fir laga, puri kawita hi wishesh hai.

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