'शेष है अवशेष' आपकी लिपि में (SHESH HAI AVSHESH in your script)

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Wednesday, March 25, 2009

आधी रात के बाद

आधी रात के बाद
जब तारे ऊंघने लगते हैं,
तब भी कई जोड़ी आंखें
कंटीले पौधों की क्यारी में
भटकती होती हैं।

जब सारा शहर सो रहा होता है,
तब भी कई जोड़ी आंखें
धुंध की कीच में
रास्ते तलाशती होती हैं।

आधी रात तक
जब मन प्राण छटपटाते होते हैं,
तब धुएं से भरी
काली आंखों में
प्यार का बादल नहीं उमड़ता,
कोई स्पर्श
घायल अहसासों पर
कारगर मलहम नहीं बन पाता,
और चोट खाए अहं की तड़प
कील की तरह कसकती होती है।

आधी रात के बाद भी
नींद नहीं आती है कभी-कभी।
और सुबह के इंतजार में
कटती जाती है
प्रतीक्षा भरी बेलाएं।
(शैलप्रिया की यह कविता उनके काव्य संकलन चांदनी आग है से ली गयी है।)

3 comments:

  1. बहुत सुन्दर लगी यह पंक्तियाँ

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  2. वाह ! भावपूर्ण सुन्दर कविता...

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  3. 'koi bhi shparsh ghaayal ahsaason pr karagar malaham nhin ban pata'--shaayad yah har kisi ka bhoga huaa sach hai.

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