कैसे बीत जाते हैं!
अभी-अभी वर्ष 2008 बीता है। मां का काव्य संकलन 'चांदनी आग है' पढ़ रहा था कि यह कविता दिख गयी। लगा अभी इसे ब्लॉग पर डाल दूं।
-अनुराग अन्वेषी
प्यार और खुमार में डूबे हुए,
मीठे मनुहारों-से रूठे हुए,
उजले फव्वारों-से भीगे हुए,
कैसे बीत जाते हैं वर्ष!
चक्की के पाटों में पिसे हुए,
जिंदगी के जुए में जुते हुए,
भारी चट्टानों से दबे हुए,
कैसे बीत जाते हैं वर्ष!
मौसम की चौरंगी चादर-से
बोरों में भरे हुए दुःख,
मुट्ठी भर हर्ष
विजय पराजय के नाम के संघर्ष,
कैसे बीत जाते हैं वर्ष!
टूटे संबंधों के धागे-से,
दूर की यात्रा में संगी-से,
कैसे बीत जाते हैं वर्ष!
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