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ममें से किसी की भी छोटी से छोटी उपलब्धि पर मां खूब खुश होती थी। जब मैं जादू सीखने लगा, मेरी सबसे अच्छी दर्शक मां थी। मां के सामने ही मैं अपने किसी भी जादू के आइटम की पहली प्रस्तुति करता था। मां देखती भी बड़े चाव से थी और उसे आश्चर्य भी उतना ही होता था।
वर्ष 94 के उत्तरार्ध में मां की बीमारी बढ़ती गयी; इस बीच रेमी की पार्ट-III की परीक्षाएं भी सम्मपन्न हुईं। घर में रसोई की सारी व्यवस्था उलट-पलट हो गयी थी। एक तरफ दादी बीमार, दूसरी तरफ रेमी की परीक्षा। किशोरगंज से मंझली मामी आकर खाना बनातीं। बड़ा अजीब लगता था। मैंने निर्णय किया, जैसा भी बने खाना मैं ही बनाऊंगा। और फिर पूरे एक महीने तक यह व्यवस्था मेरे जिम्मे रही। मां अपनी बीमारी के बावजूद रसोई में बैठकर मुझे निर्देश देती रहती, और किसी तरह खाना बन जाता। फिर रेमी की परीक्षा खत्म हुई, दादी भी स्वस्थ हो गयी। पापा भी इस दरम्यान अपनी श्वांस की तकलीफ से परेशान रहे थे। मां के जोर देने की वजह से ही पापा ने सितंबर 93 में अपना शोध प्रबंध लिखना शुरू किया। अपनी बढ़ी हुई तकलीफ में भी पापा ने मां की इच्छा के लिए उसकी प्रेरणा से शोध प्रबंध जल्दी-जल्दी पूरा किया।
मां बहुत बीमार हो चली थी। किंतु अपनी पूरी बीमारी के दौरान भी वह पूरे परिवार के लिए सोचती रहती। मां को हमेशा लगता कि उसकी बीमारी से घर की सारी व्यवस्था अस्त-व्यस्त हो गयी है।
रांची में विभिन्न डॉक्टरों की सलाह पर मां का खान-पान विशेष परहेज से चलने लगा। मां को भूख तो लगती मगर कुछ भी खाने पर वह पचता नहीं था। मां को उल्टी हो जाया करती थी। फिर जून-जुलाई माह में हमने फैसला किया कि मां को इलाज के लिए दिल्ली ले जाया जाये। इस बीच भइया भी फोन पर यह कहता रहा कि मां को दिल्ली लेकर आओ। कई मजबूरियों में यह तुरंत संभव नहीं हुआ।
30 सितंबर को मां, मामी और मैं दिल्ली के लिए रवाना हुए। मां इस समय तक (जैसा कि बाद में मां के कुछ आत्मीय लोगों ने बताया) मन से भी कमजोर हो चुकी थी। मां ने यह बात कभी भी हमलोगों पर प्रकट होने नहीं दी।
दिल्ली यात्रा के दौरान मैं यही सोच रहा था कि वहां एक छोटा ऑपरेशन होगा और मां स्व्सथ होकर लौटेगी। परिवार के अन्य लोग भी यही सोच रहे थे। पापा अपनी अस्वस्थता के कारण दिल्ली नहीं जा पाये। उन्हें धूल से परेशानी होती है और यदि दिल्ली में उनकी बीमारी बढ़ जाती है तो अलग से एक चक्कर होता। यह सब सोचकर ही हमने पापा को रांची में रहने को कहा।
(जारी)
आप जादू विधा भी जानते हैं .बहुत बढ़िया...
ReplyDeleteमाँ बीमारी में भी सिर्फ़ बच्चों के बारे में सोचती है ..यह बात बहुत ही स्पष्ट रूप से आपकी इन कड़ियों में आई है ...